A. प्राथमिक उपचार –
प्राथमिक उपचार द्वारा किसी भी दुर्घटना ग्रस्त अथवा अचानक बीमार व्यक्ति को प्राथमिक उपचार देकर उसे होने वाली क्षतियों/तकलीफों को कम करना एवं उसकी प्राण रक्षा करना एक प्राथमिक उपचारक को पीड़ित व्यक्ति की रक्षा करना, उसको ओर अधिक क्षति से बचाना तथा स्थिति बिगड़ने से रोकना, जहाँ तक संभव हो सके, पीड़ित की क्षमता बनाये रखने के लिए उसे ज्यादा से ज्यादा आरामदेह स्थिति में लाना तथा घायल व्यक्ति को जल्दी से जल्दी विशिष्ट चिकित्सा सेवाओं के अन्तर्गत लाना इन निम्न बातों को ध्यान में रखते हुए कार्य करना चाहिए । जिससे घायल व पीड़ित व्यक्ति को आरामदेह स्थिति में लाते हुए उसकी प्राण रक्षा की जा सके ।
B. संक्रामक एवं अन्य बीमारियाँ –
संक्रामक एवं अन्य बिमारियों जैसे- मलेरिया, टाइफाइड, हैजा, निमोनिया, पेचिस, चेचक, खसरा, टी०बी०, पीलिया, डेंगू, सर्दी जुकाम, मौसमी बुखार, फोड़ा, फुन्सी आदि बीमारियों की प्राथमिक स्तर पर पहचान बचाव एवं रोकथाम करना -संक्रामक रोगों को भी मनुष्य के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है ज्यादा प्रभावित होने पर लोगो की मृत्यु तक हो जाती है । एक प्राथमिक उपचारक को कार्य है कि संचारी रोग व अन्य बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति का निदान करते हुए रोग की प्राथमिक स्तर पर पहचान करनी चाहिए तथा लोगों को संक्रामक रोगों के बचाव एवं रोकथाम हेतु जानकारी देना चाहिये ।
C. एंटीबायोटिक दवाइयाँ – चिकित्सक द्वारा दिये गये परामर्श के अनुसार निर्धारित समय तक एंटीबायोटिक दवाइयां लिए जाने चाहिए, क्योंकि अधिक समय तक लेने पर उनके दुष्प्रभाव बहुत अधिक बढ़ जाते हैं और यदि रोगी कम समय तक औषधि लेता है, तो संक्रमण पूर्ण रूप से ठीक नहीं हो पाता है और और एंटीबायोटिक्स बंद कर देने के बाद पुनः संक्रमण हो जाता है और बार-बार अपूर्ण एंटीबायोटिक्स कोर्स देने के कारण धीरे-धीरे जीवाणुओं पर एंटीबायोटिक्स प्रभावहीन हो जाते हैं | इसके बारे में आमजन को आवश्यक जानकारी देना।